तेरे दीदार को हैं मेरी आखें तरस गयी
आजा अब तो मौसम की हर रुत बरस गयी
तेरे बिना मैं अकेला तन्हा
दुनिया की हर कुशी से अन्जां
तेरे इंतज़ार में यह आखें थक गयी
मानो ज़िन्दगी की जैसे रफ़्तार थम गयी
अब आ जालिम और न सता
अपनी याद में मेरे दिल को और न रुला
मारना है तो मुझे अपने हुसन से मार
जुदाई में क्या रखा है
प्यार करना है तो मुझ से कर
इस खुदाई में क्या रखा है
1 comment:
1st comment! *going to read the poem now*
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