Wednesday, April 29, 2009

प्यार करना है तो मुझ से कर

तेरे दीदार को हैं मेरी आखें तरस गयी

आजा अब तो मौसम की हर रुत बरस गयी

तेरे बिना मैं अकेला तन्हा

 दुनिया की हर कुशी से अन्जां

 

तेरे इंतज़ार में यह आखें थक गयी

मानो ज़िन्दगी की जैसे रफ़्तार थम गयी

अब आ जालिम और न सता

अपनी याद में मेरे दिल को और न रुला

 

मारना है तो मुझे अपने हुसन से मार

जुदाई में क्या रखा है

प्यार करना है तो मुझ से कर

इस खुदाई में क्या रखा है

1 comment:

Anonymous said...

1st comment! *going to read the poem now*